पूरब का ऑक्सफ़ोर्ड' और 'साहित्य की राजधानी' जैसे और भी कई विशेषणों से मशहूर शहर इलाहाबाद को एक पत्रकार और उभरते कहानीकार ने जैसा देखा, जिया और भुगता, हूबहू वैसा उतार दिया है। इस अलहदा शहर की मस्ती, इसकी बेबाकी और इसमें मिली मोहब्बत का कोलाज है यह किताब जिसमें व्यक्तिगत ज़िन्दगी की कड़वाहटें भी हैं, पत्रकारिता की मजबूरियाँ भी, सिनेमा-साहित्य के सपने भी हैं और उगती दोस्तियों के उर्वर बीज भी, कुछ काँटे ...